फिर ताज नही ..

क्यों कहते हो मेरे लिए ताजमहल बनाओगे
क्या जीतेजी तुम मुझे दफनाओगे ?
मैंने सब कुछ खोया है सिर्फ तुम्हे पाने के लिए
न की मिट्टी में दफ़न हो ताजमहल कहलाने के लिए !

नहीं बनना मुझे एक ऐसे महल की कब्र
जिसमें चारों तरफ जल रही हो हमारे मुहब्बत की अब्र !
जिसे देखने तो सब आये, पर
दीवारों में सिसकती हमारे प्यार को कोई सुन ना पाये !

चलो आज में तुमसे कहती हूँ -
चलो एक छोटा सा घर बनाये
जिसे हम अपने प्यार के रंगों से सजाये
जिसके दरवाजे से खुशिया आये
खिड़की से सुख - समृद्धि की हवा घर में भर जाये !

जिसके आस - पास न हो कोई दुःख या पीर
जिसके किनारे पर बहे एक इश्क की नीर
उस नीर में हम खेले और नहाये
अपने चारों तरफ एक प्यारा सा संसार बसाये !

आओ ! चलो हम मिलकर एक छोटा सा घर बनाये !!!!!!!

2 comments:

vijay kumar sappatti said...

namaskar

aapne achi kavita likha hai ...bhaavo ki sahi abhivyakti hai ..bahut hi acchi abhivyakti hai hai " pyaar " ke baate men ..

meri badhai sweekar kare...

dhanywad..

pls visit my blog " poemsofvijay.blogspot.com " aur meri kavitao par kuch kahiyenga , specially "tera chale jaana " aur " aao Sajan " par .. mujhe khushi hongi ..

dhanyawad..

Ujjwal Srivastava said...

विजय जी , रचना पसंद करने के लिए आपका आभार ......मैं आपकी रचनाओ पर अपने विचार देने की कोशिस करूँगा ........

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