वो शाम भी अजीब थी...... .


एक शाम तुम आई थी
आँचल में खुशियाँ लायी थी
मैं देख रहा था तुमको
तुम दिखा उन्हें मुस्काई थी !

बैठी तुम मेरे पास
दिखाया अपनी "जीवन आस"
बताई मैंने छोटी बात
पर तुमको लगी अनोखी थी !

रखा हाथों में कुछ होता
तो लूला बिलकुल खाली होता
तुम समझ सकी ना इनको
नहीं बात ये कोई नवेली थी !

जीवन का ढंग निराला है
कंही घनी रात, कही दिन का नया उजाला है
मैं दिखा रहा था जीवन
तुम धुंध समझ घबरायी थी !

देखो जीवन के पन्नो को
कर्मो से लिखी जाती है कविता
तुम सफल बनो ये दुआ मेरी
पर समझ कंहा तुम पाई थी !

एक शाम तुम आई थी !!!

मैं कौन हूँ .....

मैं एक शब्द हूँ
एक आस्था हूँ
एक विश्वास हूँ
एक प्रेरणा हूँ
... समर्पण हूँ ... प्रतिबदत्ता हूँ

मैं एक सच हूँ
ईश्वर का आशीर्वाद हूँ
माँ का प्यार हूँ
अपनों का दुलार हूँ
पिता का संसार हूँ
ऊँगली थम कर चला
उनकी लाठी का काठ हूँ

मैं एक संघर्ष हूँ
तूफ़ान में खडा पेड़ हूँ
लहरों से टकराता पर्वत हूँ
डोर से बंधा पतंग हूँ
कभी सावन कभी भादो तो कभी पतझड़ हूँ

मैं प्रकृति का सौन्दर्य हूँ
बारिश की बूँद हूँ
पंछी की कलरव हूँ
फूल की खुशबू हूँ
एक बच्चे की मोहक निर्मल मुस्कान हूँ
मैं उज्जवल सा उज्जवल सिर्फ और सिर्फ उज्जवल हूँ .

जिन्दगी तू ऐसी क्यों है ....



एक रोज़ जब पैदा हुआ था
जननी को बधाईयाँ मिली थी
" बधाई हो ! बेटा पैदा हुआ है!"
लोग खुश हुए थे
मिट्ठाईया बटी थी , सोहर हुआ था !


एक रोज़ जब चलना सीखा था
अपनों के चेहरे पे मुस्कान आयी थी
" अरे वाह ! आज अपने पैरों पे खडा हो गया
आखिर चलना सीख लिया !"





एक रोज़ जब जिन्दगी की पहली लडाई जीती थी
घर में फिर खुशिया छायी थी
पालनहार को बधाईया मिली थी
"बधाई हो ! बेटा अच्छे अंको से पास हो गया "

पर आज जब पहली बार हार गया हूँ
जब खुद उदास और परेशान हूँ
वो बोली -"सारा वक़्त आने जाने में ही बिताया "
"आखिर तुमने किया ही क्या है ?"उन्होंने पूछा
लोगो ने सलाह दी -" कभी तो कुछ मन से करो "

तो मेरा दिल अब मुझसे ही सवाल करता है
दोस्त हार और जीत में इतना अंतर क्यों है
जब जीत सबकी तो हार सिर्फ तेरी क्यों है ?

कुछ बात करें ...


आ जिन्दगी चल बैठ बातें करें
कुछ मेरी सुन , कुछ अपनी सुना !
पाया क्या कुछ ,या खोया सब
चल सुख- दुःख का हिसाब करें !
न सपनो में जियें ना झूठी आस में रहें
चल मिलकर हकीकत की जमीं पर पाँव धरें !
अपनी मुस्कुराहट के लिए तो बहुत जी लिया
अब औरो की हँसी के लिए कुछ कर्म करें !
अपनों के साथ गिर गिर कर खुद उठते रहे
चल किसी गैर के उठने में मदद करें !

आ जिन्दगी ! चल बैठ बातें करें ......

आखिर मैं क्या करूँ...

अपने प्यार को बयाँ करू
या तुझसे शिकवा करू
तू ही बता दे दोस्त
खुद्द को कैसे जाहिर करू ..............

मेरे सच पे तो तुझे यकीन नहीं
झूठ को कैसे मै सच साबित करू ..
मेरी परछाई से जो तुझे नफरत है तो
खुद को कैसे अपनी परछाई से जुदा करू .............

हर लम्हा तू मेरे साथ है
मैं कैसे तुझे खुद से जुदा करूँ
तू मेरे लिए तो सब कुछ है
पर मैं भी तेरा बन जाऊँ, तू ही बता
आखिर मैं क्या करूँ..............?

मैं तेरी हूँ !

जाने से पहले इतना तो कर जाउंगी
तेरे पलकों की पोरों को गीला कर जाउंगी !

मेरी आँखों की नमी को तो तू देख न पाया
अब तेरे खरे पानी का दर्द तुझे सताएगा !

मैं तेरी यादों में रात भर तड़पती रही
पर अब तू खुद सोना भूल जायेगा !

मेरे दिल-ए- दर्द को तुने मजाक समझा
अब तेरा दर्द ही तुझे मेरी याद दिलाएगा !

मैं सिर्फ तेरी हूँ , यदि यह सच है
तो देखना एक रोज तू भी मेरा हो जायेगा !

अगर मेरा प्यार सच है तो
खुदा खुद तुझे ले मेरे पास आयेगा !!

फिर ताज नही ..

क्यों कहते हो मेरे लिए ताजमहल बनाओगे
क्या जीतेजी तुम मुझे दफनाओगे ?
मैंने सब कुछ खोया है सिर्फ तुम्हे पाने के लिए
न की मिट्टी में दफ़न हो ताजमहल कहलाने के लिए !

नहीं बनना मुझे एक ऐसे महल की कब्र
जिसमें चारों तरफ जल रही हो हमारे मुहब्बत की अब्र !
जिसे देखने तो सब आये, पर
दीवारों में सिसकती हमारे प्यार को कोई सुन ना पाये !

चलो आज में तुमसे कहती हूँ -
चलो एक छोटा सा घर बनाये
जिसे हम अपने प्यार के रंगों से सजाये
जिसके दरवाजे से खुशिया आये
खिड़की से सुख - समृद्धि की हवा घर में भर जाये !

जिसके आस - पास न हो कोई दुःख या पीर
जिसके किनारे पर बहे एक इश्क की नीर
उस नीर में हम खेले और नहाये
अपने चारों तरफ एक प्यारा सा संसार बसाये !

आओ ! चलो हम मिलकर एक छोटा सा घर बनाये !!!!!!!

आखिर क्या है प्यार ?

एक शब्द
एक अधूरा शब्द
शब्दों का मेल
या भावनाओ का खेल
आखिर क्या है प्यार ?

एक नया रिश्ता
रिश्तो का बंधन
सानिध्य का ख्याल
या सपनो का बनता बिगड़ता जाल
आखिर क्या है प्यार ?
एक समर्पण
एक से प्रतिबद्धता
किसी को पाने की चाह
या दिल से निकलती एक मीठी आह
आखिर क्या है प्यार ?

एक नई उमंग
मन में उठती एक नई तरंग
चाँद - तारे तोड़ने का हौसला
या कभी कभी महसूस होता एक गलत फैसला
आखिर की है प्यार ?

आखिर क्या है प्यार ??

तेरी - मेरी परछाई...

दीवारों पे तेरा नाम लिखना नही आता
तुझसे खुद को अलग करके सोचना नही आता
चंद फासले आज भी है हमारे बीच
पर अब इन्हे भरना नही आता ,

एक वो दिन था जब पहली बार तेरी परछाई से मेरी परछाई टकराई थी
दिल ने हौले से इसे एक करने की दस्तक लगायी थी
तेरे साथ कुछ कदम और चलने का सपना था
पर जाने क्यों तुझे रास्ता बदलना था ...

मैं आज भी उस मोड़ पे हूँ
जंहा तक तेरे कदमो के निशान है
अब जाऊँ तो किधर जाऊँ
मैं खुद में बड़ा हैरान - परेशान हूँ ..

सोचता हूँ
काश तुमने रास्ता न बदला होता
मेरे साथ न छोड़ा होता
हमारी परछाई एक होती
किसी नए रस्ते की न तलाश होती

पर अब इन बातो में क्या रखा है
तेरे बारे में सोचना एक धोखा है
जिन्दगी बहुत आगे आ चुकी है

तेरे रास्ते से मेरा रास्ता जुदा है
अब दोनों का अलग अलग खुदा है
तुझे याद करने की कोई वज़ह नही
पर तुझे भूल जाऊँ ये भी तो संभव नही !!!!!!!!!!