जिन्दगी तू ऐसी क्यों है ....



एक रोज़ जब पैदा हुआ था
जननी को बधाईयाँ मिली थी
" बधाई हो ! बेटा पैदा हुआ है!"
लोग खुश हुए थे
मिट्ठाईया बटी थी , सोहर हुआ था !


एक रोज़ जब चलना सीखा था
अपनों के चेहरे पे मुस्कान आयी थी
" अरे वाह ! आज अपने पैरों पे खडा हो गया
आखिर चलना सीख लिया !"





एक रोज़ जब जिन्दगी की पहली लडाई जीती थी
घर में फिर खुशिया छायी थी
पालनहार को बधाईया मिली थी
"बधाई हो ! बेटा अच्छे अंको से पास हो गया "

पर आज जब पहली बार हार गया हूँ
जब खुद उदास और परेशान हूँ
वो बोली -"सारा वक़्त आने जाने में ही बिताया "
"आखिर तुमने किया ही क्या है ?"उन्होंने पूछा
लोगो ने सलाह दी -" कभी तो कुछ मन से करो "

तो मेरा दिल अब मुझसे ही सवाल करता है
दोस्त हार और जीत में इतना अंतर क्यों है
जब जीत सबकी तो हार सिर्फ तेरी क्यों है ?

4 comments:

Anonymous said...

yahi duniya ka usool hai...jab achha ho sab doosare ke karan aur jab kuchh bura ho to sirf tumhare karan...yahi se hume jeevan kaise jeena hai usaki seekh milati hai.

वीनस केसरी said...

आपकी पोस्ट पढ़ कर ये शेर याद आ गया

तुमने दिल की बात कह दी आज ये अच्छा हुआ
हम तुम्हे अपना समझते ठ बड़ा धोका हुआ

वीनस केसरी

Gopal ji said...

Shabdon ko anubhav ki anupam dor mein piro kar jo aapne rachana ki hai nishchit roop se ye ek uphaar hai...main aapke is safal prayaas ki sarahna ke saath aapke ujjwal bhavishya ki kamna karta hoon..

Aapka Anuj--GOPALPANDEY

Ujjwal Srivastava said...

गोपाल जी ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आप ने इतने सुंदर शब्द कहे ........आपका आभार .....

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