वो शाम भी अजीब थी...... .


एक शाम तुम आई थी
आँचल में खुशियाँ लायी थी
मैं देख रहा था तुमको
तुम दिखा उन्हें मुस्काई थी !

बैठी तुम मेरे पास
दिखाया अपनी "जीवन आस"
बताई मैंने छोटी बात
पर तुमको लगी अनोखी थी !

रखा हाथों में कुछ होता
तो लूला बिलकुल खाली होता
तुम समझ सकी ना इनको
नहीं बात ये कोई नवेली थी !

जीवन का ढंग निराला है
कंही घनी रात, कही दिन का नया उजाला है
मैं दिखा रहा था जीवन
तुम धुंध समझ घबरायी थी !

देखो जीवन के पन्नो को
कर्मो से लिखी जाती है कविता
तुम सफल बनो ये दुआ मेरी
पर समझ कंहा तुम पाई थी !

एक शाम तुम आई थी !!!

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